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सांविधानिक विधि
तेज प्रकाश पाठक एवं अन्य बनाम राजस्थान उच्च न्यायालय एवं अन्य (2024)
«30-Dec-2024
परिचय
- यह भर्ती के नियमों पर चर्चा करने वाला एक ऐतिहासिक निर्णय है।
- यह निर्णय भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय, न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा, न्यायमूर्ति पंकज मिथल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने सुनाया।
तथ्य
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने तीन वर्ष का अनुभव और अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर डिग्री सहित योग्यता वाले 13 अनुवादक पदों के लिये आवेदन आमंत्रित किये।
- विधि स्नातकों को प्राथमिकता दी जानी थी।
- यह भर्ती "राजस्थान उच्च न्यायालय कर्मचारी सेवा नियम, 2002" (2002 नियम) द्वारा शासित थी।
- नियमों में चयन के लिये योग्यता, प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार प्रक्रिया निर्धारित की गई थी।
- वर्ष 2004 में एक संशोधन द्वारा पात्रता के लिये न्यूनतम अर्हक अंक प्राप्त करने की पूर्व शर्त को हटा दिया गया।
- वर्ष 2009 में आगे के संशोधनों में अंग्रेज़ी साहित्य में स्नातकोत्तर योग्यता पर ज़ोर दिया गया।
- दिसंबर 2009 में आयोजित लिखित परीक्षा में केवल तीन अभ्यर्थी ही मुख्य न्यायाधीश द्वारा निर्धारित 75% कटऑफ अंक को प्राप्त कर सके।
- इसका उद्देश्य न्यायिक नियुक्तियों के लिये उच्च मानक सुनिश्चित करना था।
- असफल अभ्यर्थियों ने तर्क दिया कि 75% का मानक निर्धारित करना "भर्ती के नियमों को बदलने" के समान है।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी, जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान अपील प्रस्तुत की गई।
शामिल मुद्दा
- क्या भर्ती प्रक्रिया शुरू होने के बाद प्रक्रियागत नियमों में बदलाव किया जा सकता है?
टिप्पणी
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि चयन सूची में शामिल अभ्यर्थी को नियुक्ति पाने का अविभाज्य अधिकार नहीं है, भले ही रिक्तियाँ उपलब्ध हों।
- जब नियुक्तियों को चुनौती दी जाती है तो राज्य को रिक्तियों को न भरने के अपने निर्णय का औचित्य बताना होगा।
- राज्य या उसके तंत्र मनमाने ढंग से चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने से इनकार नहीं कर सकते।
- नियुक्ति से इनकार करने के मामले में, राज्य पर चयन सूची में से किसी अभ्यर्थी को नियुक्त न करने के अपने निर्णय को उचित ठहराने का दायित्व है।
- यदि रिक्तियाँ उपलब्ध हों, तो राज्य या उसके तंत्र को चयन सूची में विचाराधीन क्षेत्र के अभ्यर्थियों को नियुक्ति देने से मनमाने ढंग से इनकार नहीं करना चाहिये।
- राज्य या उसके संगठन वास्तविक कारणों से रिक्तियों को न भरने का निर्णय ले सकते हैं।
- भर्ती प्रक्रिया को नियंत्रित करने वाले पात्रता मानदंड या नियमों को चयन प्रक्रिया के बीच में तब तक नहीं बदला जा सकता जब तक कि नियमों द्वारा स्पष्ट रूप से अनुमति न दी गई हो।
निष्कर्ष
- यह एक ऐतिहासिक निर्णय है, जिसमें उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि भर्ती प्रक्रिया शुरू हो जाने के बाद चयन प्रक्रिया के "नियमों" में तब तक बदलाव नहीं किया जा सकता, जब तक कि लागू नियमों द्वारा स्पष्ट रूप से इसकी अनुमति न दी गई हो।